“वननिवासी अनुसूचित जनजाति” और “अन्य परंपरागत वननिवासी” अधिकारों के लिए पात्र हैं।

वननिवासी अनुसूचित जनजाति का मतलब मुख्य रूप से वन में रहनेवाली अनुसूचित जमातियों के सदस्य या समाज यह है, और उसमें अनुसूचित जनजातियों के अपनी जीविका की वास्तविक जरूरतों के लिए वनों पर या वन भूमि पर निर्भर रहनेवाले घुमक्कड़ आदिवासी समाज का समावेश होता है।

अन्य परंपरागत वननिवासी का मतलब १३ दिसंबर २००५ से पहले कम-से-कम तीन पीढियों से (पीढी का अर्थ २५ साल का एक समयावधि) मुख्य रूप से वन में रहनेवाला और अपनी जीविका की वास्तविक जरूरतों के लिए वनों पर या वन भूमियों पर निर्भर रहनेवाला कोई भी सदस्य या समाज यह है।

ग्राम सभा का अर्थ गांव के सारे व्यस्क्य सदस्यों से बनी ग्राम सभा

१. वन अधिकारों के काम का स्वरूप और दावों की निराकरण करने की प्रक्रिया की शुरुआत करना और उससे जुड़े मामलों को प्राप्त कर उनकी सुनवाई करना।

२. वन अधिकारों की दावेदारों की सूची बनाना।

३. हितार्थी व्यक्ति और संबंधित प्राधिकरण को उचित अवसर देने के बाद वन अधिकारों की मांगों के निर्णय को अनुशंलित करना और उसे उपखंड स्तर की समिति के पास भेजना।

४. अधिनियम की धारा ४ की उपधारा (२) के खंड (ड:) के तहत पुनर्वास के पॅकेजेस का विचार करते हुए यथोचित निर्णय की अनुशंसा देना।

५. अधिनियम की धारा ५ के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए वन्यजीवन, वन और जैव विविधता की सुरक्षा के लिए उसके सदस्यों में से समिति का गठन करना। .

१. पहले वन अधिकार समिति दावेदार को और वन विभाग को योग्य/आवश्यक सूचनाएं देती है। उसके  बाद...
अ. वन अधिकार समिति स्थान का एकल  भौतिक  सत्यापन करेगी और उसी स्थान पर मामले का स्वरूप,  और सबूतों का प्रत्यक्ष रूप से सत्यापन करेगी और

आ. वन अधिकार समिति दावेदारों और गवाहों द्वारा प्रस्तुत किया गया कोई भी सबूत या अभिलेख स्वीकार करेगी। इ. वन अधिकार समिति यह सुनिश्चित करेगी की घुमक्कड़ आदिवासी तथा घुमक्कड़ जनजातियों ने, या तो व्यक्तिगत सदस्यों द्वारा, सामुदायिक रूप से या परंपरागत सामुदायिक संस्थाओं द्वारा उनके अधिकार निर्धारित करने के लिए की हुई अधिकारों की मांग का, ऐसे व्यक्ति, समूह या उनके प्रतिनिधि की उपस्थिति में सत्यापन किया गया है। ई. वन अधिकार समिति यह सुनिश्चित करेगी की आदिम आदिवासी समूह या कृषि-पूर्व समूह के सदस्यों ने उनके समूहों द्वारा या परंपरागत समूह संस्था द्वारा उनके निवासस्थान का अधिकार निर्धारित करने के लिए की हुई अधिकारों की मांग का उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में सत्यापन किया गया है। उ. वन अधिकार समिति पहचाने जाने योग्य सीमा चिहनों को दर्शाते हुए प्रत्येक अधिकार मांग के क्षेत्र का सीमांकन नक्शा तैयार करेगी।

    २. उसके बाद वन अधिकार समिति अधिकार की मांग पर अपने निष्कर्ष बनाएगी और विचार के लिए ग्राम सभा के सामने उसे पेश करेगी।

३. यदि दूसरे गांव के परंपरागत या संरचित सीमाओं को लेकर परस्पर-विरोधी अधिकार की मांगें की गई हो या यदि वन क्षेत्र का उपयोग एक से अधिक ग्राम सभाओं द्वारा किया जा रहा हो तो संबंधित ग्राम सभाओं की वन अधिकार समितियाँ ऐसे अधिकारों के उपभोग के स्वरूप पर विचार करने के लिए एक साथ बैठेंगी और संबंधित ग्राम सभाओं को उसके निष्कर्ष लिखित रूप में प्रस्तुत करेंगी।

४. लेकिन यदि ऐसा हो कि ग्राम सभा को परस्पर-विरोधी अधिकार की मांगों के बारे में लिया गया निर्णय मंजूर ना हो तो उन्हें उपखंड स्तर की समिति को निर्देशित किया जाएगा।

५.ग्राम सभा या वन अधिकार समिति द्वारा जानकारी, अभिलेख या दस्तावेज मिलने के लिए लिखित अनुरोध करने के बाद संबंधित अधिकारी उसकी प्रमाणिकृत कापी ग्राम सभा या यथास्थिति वन अधिकार समिति के पास भेज देंगे और यदि आवश्यकता हो तो अधिकृत अधिकारी द्वारा उसका अर्थ सुगम स्थानीय बोली में किया जायेगा !

१. वन अधिकारों को मान्यता देने के लिए निम्न में से कम-से-कम दो सबूत देना आवश्यक है।

   अ.सार्वजनिक दस्तावेज, राज-पत्र, जनगणना, सर्वेक्षण और सुलह रिपोर्ट, नक्शे, उपग्रह चित्र, कार्य योजना, प्रबंधन योजना, सूक्ष्म योजना, वन जांच-प़ताल/पूछताछ रिपोर्ट, अन्य वन अभिलेख, पट्टा या कराया पट्टा इस प्रकार के किसी भी अन्य नाम से जाने जानेवाला अधिकारों का अभिलेख जैसे सरकारी अभिलेख, समितियाँ या आयोग के सरकार द्वारा गठित किए गए रिपोर्ट, सरकारी आदेश, अधिसूचना, परिपत्र, प्रस्ताव.

  आ. मतदाता पहचानपत्र, राशन कार्ड , पासपोर्ट, गृह कर रसीद, अधिवास प्रमाणपत्र जैसे सरकार द्वारा  अधिकृत किए गए दस्तावेज

इ. घर, झोपडियां तथा जमीन पर किए गए स्थिर/स्थायी विकास, जैसे की समतलन, बांध का निर्माण, प्रतिरोधी बांध एवं ऐसी अन्य भौतिक सुविधाएं

ई.न्यायिक/अदालती आदेश तथा न्याय निर्णय इनका समावेश रहे न्यायिकवत तथा न्यायिक अभिलेख.

उ. किसी भी वन अधिकार का उपभोग दर्शानेवाली ꣳऔर परंपरागत कानून का समर्थन करनेवाली रुढियों का एवं परंपराओं का भारतीय मानववंशशास्त्रीय सर्वेक्षण संस्था जैसी सम्मानित संस्था द्वारा किया गया अन्वेषण अभ्यास तथा लेखांकन

ऊ.भूतपूर्व प्रांतीय राज्य या प्रांत या ऐसी किसी भी मध्यस्थ संस्था द्वारा प्राप्त कोई भी अभिलेख जिसमें नक्शा, अधिकार की प्रविष्टियाँ, विशेषाधिकार, छूट, अनुग्रह इनका अंतर्भाव होगा।

ए.पुरातनता सिद्ध करनेवाले कुएं, कब्रिस्तान, पवित्र स्थान जैसी परंपरागत रचनाएं।

ए.पूर्व भूमि अभिलेखों में उल्लेख किए गए व्यक्तियों के पूर्वजों का पता चलाने वाली या पूर्व काल में उस गांव के निवासी होने की पहचान बताने वाली वंशावली

ओ. दावेदार के सिवाय अन्य वरिष्ठ व्यक्ति का लिखित बयान

२. सामुदायिक वन अधिकारों के सबूतों में अन्य चीजों के साथ निम्न का अंतर्भाव होगा

अ. सामुदायिक अधिकार, जैसे निस्तार - फिर चाहे वे किसी भी नाम से ज्ञात हो,

आ. परंपरागत चरागाह जमीन, कंद मूल, घास, वन्य फल तथा अन्य गौण वन उत्पाद, मछली पालन क्षेत्र, सिंचाई प्रणाली, मनुष्य या पशुओं के उपयोग के लिए पानी के स्रोत, औषधीय पौंधे इकठ्ठा करनेवाले व्यवसायिओं के क्षेत्र.

इ.स्थानिक समूहों द्वारा बनाई गई रचनाओं के अवशेष, पवित्र पेड़, देवराई, तालाब या नदी क्षेत्र, दफन या दहनभूमि

३. ग्राम सभा, उपखंड स्तर की समिति और जिला स्तर की समिति वन अधिकारों को निर्धारित करते समय उल्लिखित बातों में से एक से अधिक बातों को विचार में लेंगी।

प्र८. वन अधिकार धारक के कर्तव्य क्या हैं?

१.प्रत्येक वन अधिकार धारक द्वारा वन्य जीवन, वन तथा जैव विविधता का संरक्षण किया जाना आवश्यक है।

२. प्रत्येक वन अधिकार धारक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि पास-पड़ोस के जलग्रहण क्षेत्र, जलस्रोत एवं अन्य संवेदनशील क्षेत्र पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं।

३.प्रत्येक एक वन अधिकार धारक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वननिवासियों का निवास स्थान, उनके सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को किसी भी तरह से हानि पहुँचा सके ऐसी किसी भी प्रकार की प्रथा/रिवाजों से सुरक्षित रखा गया है।

४. प्रत्येक वन अधिकार धारक द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि सामाजिक वनों के स्रोत प्राप्त करने की पद्धतियों का विनियमन करना तथा वन्य पशु, वन एवं जैव विविधता इन पर प्रतिकूल प्रभाव डालनेवाले किसी भी क्रियाकलाप को रोकने हेतु ग्राम सभा द्वारा लिए गए निर्णयों का पालन किया जा रहा है।

१.ग्राम सभा के निर्णय से प्रभावित व्यक्ति को उपधारा (३) के तहत स्थापित की गई उपखंड स्तर की समिति से अपील का आवेदन करना होगा। उपखंड स्तर की समिति ऐसे अपील आवेदनों पर विचार कर के निर्णय लेगी।

२. लेकिन ऐसा प्रत्येक अपील आवेदन ग्राम सभा द्वारा निर्णय के अनुशंसा किए जाने की तारीख से सांठ दिनों के अंदर दर्ज करना आवश्यक है।

३.प्रभावित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिए बिना ऐसे किसी भी अपील आवेदन का निर्णय उसके खिलाफ नहीं दिया जाएगा।

१. उपखंडस्तर की समिति के निर्णय से व्यथित व्यक्ति को समिति के निर्णय की तिथि से ६० दिनों के भीतर जिला स्तर समिति के लिए अपील प्रपत्र दाखिल करना चाहिए। जिला स्तर समिति इस तरह के अपील फार्म पर विचार करेगी और इसे फैसला लेगी।

२. हालाँकि, जब तक कि उपखंडस्तर की समिति को आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है और उसने इस पर विचार नही किया है, तब तक ग्राम सभा के फैसले के खिलाफ कोई भी अपील जिला स्तर समिति को सीधे दायर नहीं किया जाएगा।

३. इस तरह व्यथित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिये बिना उस व्यक्ति के खिलाफ कोई भी फैसला नही लिया जायेगा।

अधिकार दर्ज करने के मामलों के लिए बुलाई गई ग्राम सभोओं में २/३ गणसंख्या का होना आवश्यक है। सचिव ग्रामपंचात इन ग्राम सभाओं का सचिव होगा। ऐसी पहली ग्राम सभा में दस से पंद्रह लोगों की समिति बनाकर इन सदस्यों में से अध्यक्ष और सचिव का चुनाव करके उनके नामों की सूची के साथ प्रस्ताव अनुशंसित करवाना है। यह प्रस्ताव उपखंड अधिकारी के पास भेजना है। इस समिति को ‘ग्राम अधिकार समिति’ के नाम से जाना जाएगा। इस समिति में कम-से-कम १/३ सदस्य अनुसूचित जनजाति से और कम-से-कम १/३ महिला सदस्यों का होना आवश्यक है।

अधिनियम में १३ अधिकारों की सूची का समावेश है लेकिन अनिवार्य रूप में होनेवाले अधिकार निम्न हैं।

१. धारण की हुई या खेती के तहत जमीन का अधिकार

२. गौण वन उत्पाद के ऊपर का अधिकार

३. जमीन के इस्तेमाल/उपयोग का अधिकार, पशु चराना, मछली पकड़ना आदि का अधिकार

४. घरों का अधिकार

५. निवास स्थान का अधिकार [केवल खेतीपूर्व समुदाय और आदिम समुदायों को लागू]

६. पुनर्वास का अधिकार मांगा जा सकता है।

समूह/समुदाय ग्रामपंचायत में समाविष्ट हर एक राजस्व ग्राम के लिए उसी ग्राम के लोगों द्वारा स्वतंत्र वन अधिकार समिति की स्थापना की जानी चाहिए।

१.परिवार के छात्र के पाठशाला के प्रमाणपत्र पर जाति का नाम दर्ज किया हुआ हो तो उसे इस अधिनियम के लिए वैध माना जा सकता है।

२.रिश्तेदारों के पाठशाला प्रमाणपत्र पर दर्ज की गई जाति को वैध माना जा सकता है।

३. जाति के बारे में यदि कोई आशंका हो तो वन अधिकार समिति संबंधित लाभार्थियों को निर्देश देते हुए उपखंड अधिकारी (प्राधिकृत अधिकारी) से जाति प्रमाणपत्र लेकर आवेदन के साथ प्रस्तुत करने का आदेश दे सकते हैं।

४. जाति के बारे में यदि कोई आशंका हो तो ऐसे मामलों में उपखण्ड समिति संबंधित लाभार्थियों को उनके जाति प्रमाणपत्र को जाति सत्यापन समिति द्वारा सत्यापित करवाने का आदेश दे सकती है।

दावेदार की जीविका की वास्तविक जरूरतें यदि उसके कब्जे में रहे वन या वन भूमि पर निर्भर हो तो ही वह इस अधिनियम के तहत दावेदार पात्र हो सकता है। इसके बारे में नियम 2008 की धारा क्रमांक 2(ख) देखी जा सकती है।

वन अधिकार समिति के सदस्य सचिवों का चुनाव उसी समिति के सदस्यों में से करने का काम वन अधिकार समिति को ही करना है।.

प्रस्तुत धारा के तहत इन सब से वन्य जीव, वन एवं जैवविविधता, प्राकृतिक साधन संपत्ति, सांस्कृतिक विरासत आदि का संरक्षण करना अपेक्षित है। साथ ही ग्राम सभा द्वारा नियम की धारा 4(ई) के तहत इसके लिए समितियों का गठन करना अपेक्षित है।

अधिनियम की धारा २(छ) और धारा २(त) की संज्ञाओं के आधार पर इन पारा/मोहल्ला/टोला के लोगों के लाभ को ध्यान में रखते हुए यदि आवश्यकता हो तो विशेष विषय मानते हुए वन अधिकार समिति का गठन किया जा सकता है।

वन भूमि पर अधिकार प्राप्त करने के लिए उपरोक्त जमीन पर कब्जा इस संबंध में दिनांक 13.12.2005 के पहले और दिनांक 31.12.2007 को प्रस्तुत काबिज भूमि के कब्जे में होना आवश्यक है।

हाँ। ग्राम सभा द्वारा गांव की सामूहिक वनसंपत्ति को निश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि कुछ जगहों पर आसपास के गांवों की सामूहिक वनसंपत्ति के क्षेत्रों में भी उसकी सीमाएं हो सकती हैं। प्रस्तुत सामूहिक वनसंपत्ति की पारस्परिक क्षेत्र के बारे में ग्राम सभा द्वारा आसपास के गांवों की ग्राम सभाओं को सूचित करना और उसके बारे में निर्णय लेना आवश्यक है। किसी मामले में अगर बहुत ज्यादा पारस्परिक क्षेत्र सीमा का मुद्दा आए तो उसके बारे में उपखंड समिति को प्रस्तुत के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।

दावेदार का आवास 3 पीढियों से (75 साल) होना आवश्यक है लेकिन वनभूमि पर कब्जे के लिए 3 पीढियों की शर्त नहीं है। वह दिनांक 31.12.2005 के पहले का होना आवश्यक है।

वन अधिकार समिति द्वारा हर मामले का सत्यापन करके उसे ग्राम सभा को पेश किया जाना आवश्यक है। साथ ही ग्राम सभा में 2/3 कोरम की उपस्थिति में हर मामले के बारे में खुली चर्चा करना आवश्यक है ताकि झूठे मामले को ग्राम सभा के स्तर पर सभा की अनुमति से अस्वीकार किया जा सके।

अगर दावेदार वन अधिकार अधिनियम की शर्तों के तहत पात्र हो और तालाब से जुड़े संसाधनों पर निर्भर हो तो [धारा ३(१)(घ)] के तहत वन अधिकार प्राप्त किया जा सकता है।

नहीं। सरकार की सहायता से जमीन की नपाई करवाने के लिए कोई फीज देने की आवश्यकता नहीं है। अगर जमीन की नपाई करनेवाला किसी फीस /राशि की मांग करे तो तुरंत यह बात संबंधित विभाग अधिकारी तथा जिला अधिकारी को सूचित कर दी जानी चाहिए।

नहीं। प्रस्तुत अधिनियम वन अधिकारों की मान्यता के लिए है। इस अधिनियम के तहत नया अधिकार नहीं दिया जा सकता।

वन अधिकार प्राप्त करने के लिए दावेदार का उस जमीन पर दि.31.12.2005 और दि.31.12.2007 इन दोनों ही दिनों पर कब्जा होना आवश्यक है। इस मामले में आदिवासी वन अधिकार का लाभ नहीं पा सकता। साथ ही गैर-आदिवासी 3 पीढियों से वन के निवासी ना हो या उनकी वास्तविक जरूरतों के लिए उस जमीन पर वे निर्भर ना हो तो उनको भी वन अधिकार नहीं दिया जा सकता।

वन अधिकारों की मान्यता सब के लाभ के लिए है। इसका प्रचार होना आवश्यक है। गांव में सामूहिक अधिकारों को प्राथमिकता देते हुए सब को सहभागी कराना चाहिए और उस ग्राम सभा में वन अधिकार मामलों का भी संस्करण किया जाना चाहिए।.